प्रो. गेराल्ड विर्थ द्वारा म्यूजिकल वर्कशाप का आयोजन
गुडगांव: रवीन्द्रनाथ वर्ल्ड स्कूल आरड्ब्ल्यूएस ने म्यूजिक इंस्टीट्यूट आफ क्रोमेटिक्स एमआईसी के साथ मिल कर स्कूल में बच्चों को विर्थ मैथड आफ म्यूजिक लर्निंग की शुरूआत कराई हैं। आरड्ब्ल्यूएस के पास प्रगतिशील और पेशेवर रूप से परिपक्व शिक्षकों के साथ 19 साल की शैक्षिक उत्कृष्टता है जो उन्हें शिक्षा के भारतीय इतिहास में एक और उपलब्धि हासिल कराने के लिए आगे बढ़ाती है।
ग्रैमी अवार्ड विजेता, आस्टियाई संगीतकार व गीतकार प्रो. गेराल्ड विर्थ ने अपने प्रसिद्ध विर्थ मैथड की प्रस्तुति पहली बार भारत के स्कूलों व कालेजों के शिक्षाविदों व प्रयासों के समक्ष की।आस्ट्रियन-इंडियन इंस्टीट्यूट के पूर्व आर्टिस्टिक काऊंसलर रहे गेराल्ड विर्थ ने हमेशा भारतीय संस्कृति और संगीत में काफी दिलचस्पी दिखाई है। उन्होने स्वर्गीय पंडित रवि शंकर के साथ मिल कर काम किया है और अब वे भारतीय शास्त्रीय संगीत को दुनिया भर में प्रसारित करने व लोकप्रिय बनाने के लिए, म्यूजिक इंस्टीट्यूट ऑफ क्रोमेटिक्स के साथ मिल कर कार्य कर रहे हैं।
श्री यशवीर सिंह तोमर चेयरमैन आरड्ब्ल्यूएस ने कहा, “हम अपने साथ श्री विर्थ को यहां पा कर बहुत प्रसन्न हैं जो भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक नया तरीका ले कर आए हैं – जिसे दुनिया भर में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। आरड्ब्ल्यूएस में हम लगातार नई शिक्षा तकनीकों पर काम करते रहते हैं ताकि विद्यार्थियों को बेहतर पाठ्यक्रम उपलब्ध कराया जा सके। इस प्रक्रिया में समर्थन देने के लिए हम एमआईसी के आभारी हैं।“
श्री मोहित राठौर सह-संस्थापक एमआईसी (MIC) का मानना है कि‘विर्थ मैथर्ड विद्यार्थियों में उनकी कलात्मक प्रतिभाओं व परफारमेंस कुशलताओं को आगे बढ़ाने का रचनात्मक तरीका है। उनकी टीम ने स्कूलों व कालेजों में विर्थ की प्रक्रियाविधि उपलब्ध कराते हुए प्रत्येक विद्यार्थी को कक्षा में अभ्यास के लिए विशिष्ट उपकरण उपलब्ध कराने की शुरूआत की है जिसके साथ विर्थ मैथड आफ करिकुलम व पाठयक्रम तथा विषेषज्ञ व सुप्रशिक्षित शिक्षक शामिल हैं।
विएना ब्बायज़ चायर के अध्यक्ष व आर्टिस्टिक डायरेक्टर तथा विर्थ म्यूजिक एकेडमी के संस्थापक प्रो. गेराल्ड विर्थ ने अपने प्रसिद्ध विर्थ मैथड आफ आफ टीचिंग म्यूजिक को विकसित करने के लिए 20 वर्ष तक कार्य किया है। प्रो. विर्थ ने कहा, “वक्त बदल रहा है। सहत्राब्दि की अब सीमायें नहीं रहीं क्योंकि संगीत का अन्य क्षेत्रों में एकीकरण तकनीकों के अवसर बढ़ रहे हैं। कला व संस्कृति अपने शीर्ष पर हैं,यहीं नहीं सितार, तबला, बांसुरी, तानपूरे आदि को अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिल चुकी है और कई ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए विद्यार्थी अपनी रूचियों के साथ सांस्कृतिक गठबंधन कर सकते हैं।