दुनिया भर से आने वाली निंदा के बीच म्यांमार की नेता आंग सान सू ची ने महीनों बाद आसियान की एक बैठक में पत्रकारों की गिरफ़्तारी पर बात की अदालती फ़ैसले का बचाव करते हुए सू ची ने कहा “उन्हें सज़ा इसलिए नहीं मिली कि वे पत्रकार हैं सजा क़ानून का उल्लंघन करने के लिए मिली है” दरअसल ये दोनों पत्रकार अपनी न्यूज़ एजेंसी के लिए रखाइन प्रांत में हुए नरसंहार की जांच कर रहे थे म्यांमार में रिपोर्टिंग के दौरान हमारी मुलाक़ात इनमें.लोहे की सलाखों वाले गेट पर और भीतर दरवाज़े पर सैनिक तैनात रहते थे. बिना इजाज़त भीतर जाना असंभव था.एक सुबह जब पहली मंज़िल पर बैठी उस महिला ने विदेशी अख़बारों के एक बंडल के साथ किसी को गेट के भीतर आते देखा तो ख़ुशी से दौड़ती हुईं नीचे पहुँच गईं.रंगून की ख़ूबसूरत इनया झील से सटे सात कमरे वाले एक मकान के बाहर ज़बरदस्त पहरा रहता था

तब रंगून बर्मा की राजधानी हुआ करती थी और करीब-करीब पूरा शहर या तो यांगोन नदी के या इनया झील के पास ही रहता था.साल था 1988. ऑक्सफ़र्ड में पढाई करने और संयुक्त राष्ट्र जैसी जगहों पर नौकरी करने के बाद आंग सां सू ची भारत में थीं जब बर्मा में उनकी माँ को ब्रेन स्ट्रोक हुआ था.रंगून पहुँचने के एक महीने बाद ही सू ची ने देश की फ़ौजी देखरेख वाली सरकार से देश में लोकतांत्रिक चुनाव करने की मांग कर दी.

एक साल के भीतर उन्होंने नैशनल लीग फ़ॉर डेमोक्रैसी पार्टी बना कर उसे अहिंसा और जन असहयोग के सिद्धांत पर लांच कर दिया था.इसके बाद से ही उन्हें ‘फ़ौज मै फूट डालने’ जैसे कई आरोपों के मद्देनज़र झील के किनारे वाले घर में नज़रबंद कर दिया गया था.

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