रिजर्व बैंक ने फरवरी 2018 में एक सर्कुलर जारी कर यह स्पष्ट कर दिया था कि यदि कॉर्पोरेट घराने कर्ज़ को चुकाने में एक दिन की भी देरी करते हैं तो उसे डिफॉल्टर मान कर उनके कर्ज़ ली गई रकम को एनपीए घोषित कर दिया जाएगा. तकनीकी रूप से इसे ‘वन डे डिफॉल्ट नॉर्म’ कहा गया और 1 मार्च से लागू भी कर दिया गया.

सर्कुलर के मुताबिक बैंकों को ऐसे सभी पिछले मामलों को सुलझाने के लिए 1 मार्च 2018 से 180 दिनों का वक्त दिया गया था जो आज ख़त्म हो रहा है.

इस दौरान कंपनियों और बैंकों के बीच जो मामले नहीं सुलझे उन सभी कंपनियों के खातों को दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया में शामिल होने के लिए मजबूर किया जा सकता है.

उनका कहना है कि जिन मामलों का निपटारा तय समय सीमा में नहीं हुआ उसे बैंक नेशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल (एनसीएलटी) में भेजेगी. इससे एनसीएलटी बैंकों को इसका समाधान करने को कहेगा.

वो बताते हैं, “एनसीएलटी एक इनसॉल्वन्सी रिज़ल्यूशन प्रफेशनल यानी आईआरपी की नियुक्ति करेगा. इनका काम होगा कि नुकसान किसका होगा. लेकिन बैंक नहीं चाहते हैं कि मामला एनसीएलटी के पास जाए क्योंकि इसमें बैंक का भी नुकसान होगा, इसके कई उदाहरण भी हैं जब इस तरह के मामलों में पहले बैंकों को नुकसान हुए हैं.”

ऐसी 70 कंपनियां हैं जिन पर दिवालिया घोषित किए जाने की कार्रवाई शुरू किए जाने का ख़तरा मंडरा रहा है. इन कंपनियों के पास 3.5 से लेकर चार लाख करोड़ रुपये के कर्ज़ हैं.

हालांकि इस सर्कुलर में 200 करोड़ से अधिक बकाया वाली कंपनियों से इस रकम का 20 फ़ीसदी लेकर रिस्ट्रक्चरिंग की बैंकों को छूट दी गई थी, लेकिन अभी इस पर भी सहमति नहीं बन पायी है.

आईसीआईसीआई बैंक के चेयरमैन जी सी चतुर्वेदी ने भी रिजर्व बैंक से अपने ‘वनडे डिफॉल्ट नॉर्म’ की समीक्षा करने का आग्रह किया है. गौरतलब है कि आईसीआईसीआई बैंक को एनपीए बढ़ने के कारण चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में पिछले 16 सालों के दौरान पहली बार घाटे का सामना करना पड़ा है.

परंजॉय कहते हैं, “अब बैंक अगर अपनी कार्रवाई करती हैं तो इससे सबसे ज़्यादा पावर सेक्टर की कंपनियां प्रभावित होंगी क्योंकि इसमें तीन चौथाई कंपनियां इसी सेक्टर की हैं.”

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