किसी का लिवर अगर अचानक बिगड़ जाए तो उसे अब प्रत्यारोपण की ज़रूरत नहीं पड़ेगी. एडिनबरा के वैज्ञानिकों का यह कहना है.बिगड़े लिवर में ख़ुद को ठीक करने की प्राकृतिक क्षमताएं हैं. हालांकि कुछ मामलों में इन क्षमताओं को नुकसान पहुंचता है, जैसे कि कुछ गंभीर चोटें जिसमें अधिक मात्रा में दवाओं का लेना भी शामिल है.
यह इलाज एक कैंसर की दवा है जो लीवर की क्षमता को पहले जैसा बना देती है.यह काम अपने शुरुआती चरण में है, लेकिन वैज्ञानिकों की टीम का कहना है कि प्रतिरोपण के इस विकल्प का लिवर के रोगियों पर बड़ा असर पड़ेगा.ब्रिटेन में हर साल क़रीब 200 लोगों को लिवर की ख़तरनाक ख़राबी का सामना करना पड़ता है.
21 वर्षीय स्टूडेंट नर्स कारा वाट को दो साल पहले लिवर प्रत्यारोपण की ज़रूरत थी.वो केयर होम में थीं जब उन्हें बीमारी महसूस हुई और उनका चेहरा पीला पड़ने लगा.जांच से पता चला कि उनकी लिवर में समस्या है जो और बिगड़ती ही जा रही है.उन्हें एडिनबरा के इंटेंसिव केयर में रखा गया और बताया गया कि उन्हें लिवर प्रतिरोपण की ज़रूरत है. वो कहती हैं, “यह सुनना बहुत भयानक था.”वैज्ञानिकों का कहना है कि कारा जैसे लोगों से उनके काम में मदद मिलेगी.
लिवर में ‘सेनेसेंस’ प्रक्रिया
वैज्ञानिकों की टीम ने लोगों के लिवर की यह जांच शुरू की है कि वे सुधार की क्षमता क्यों खो देते हैं.उन्होंने पाया कि गंभीर चोटों की वजह से लिवर में तेज़ी से ‘सेनेसेंस’ प्रक्रिया शुरू हो गई.सेनेसेंस प्रक्रिया में कोशिकाएं अक्सर समय से पहले बूढ़ी हो जाती हैं और उनका विभाजन थम जाता है या वो मर जाती हैं.यह उम्र बढ़ने की प्रक्रिया का हिस्सा है, लेकिन शोधकर्ताओं ने पाया कि गंभीर चोटें अंगों के माध्यम से फ़ैलने वाली संक्रामक स्थिति की तरह हैं.
‘साइंस ट्रांसलेशन मेडिसिन’ में प्रकाशित इस शोध में एक केमिकल सिग्नल भी मिला है जो इसके लिए ज़िम्मेदार मालूम पड़ता है.शोधकर्ताओं ने फिर चूहे और प्रायोगिक कैंसर थेरेपी की मदद ली जिससे केमिकल सिग्नल को रोका जा सकता है.इन्हें अधिक मात्रा में ड्रग्स दिया गया जिससे सामान्य तौर पर लिवर इतना ख़राब हो जाता है कि इससे मौत भी हो सकती है, लेकिन इलाज होने से वो बच गए.शोधकर्ता इस उम्मीद में मरीज़ों पर दवा को फ़ौरन टेस्ट करना चाहते हैं कि यह लिवर प्रतिरोपण की ज़रूरत को कम कर सकता है.