जलवायु परिवर्तन से चिंतित वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों के लिए लंबे वक़्त से गाय की गैस और डकार चिंता के विषय बने हुए हैं.वायुमंडल में हानिकारक मीथेन की अधिक मात्रा के लिए गाय-भैंसों की डकार और उनके पेट से निकलने वाली गैस को भी ज़िम्मेदार माना जाता है.वैज्ञानिक मीथेन का उत्सर्जन रोकने के लिए गायों के खाने में सुधार करने की कोशिश करते रहे हैं. उन्हें लहसुन, ओरेगैनो, जाफ़रान या अन्य सब्ज़ियां खिलाकर उसका असर देखने की कई कोशिश की गई है.गायों की गैस को कैसे कम हानिकारक बनाया जाए- कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने हाल में शोध के ज़रिए इसका रास्ता निकाल लिया है.वैज्ञानिकों का कहना है कि गाय को समुद्री शैवाल खिलाने से उनकी गैस में मीथेन की मात्रा कम हो सकती है और इससे पर्यावरण की रक्षा हो सकती है.

संयुक्त राष्ट्र की फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइज़ेशन की 2014 की रिपोर्ट के अनुसार.

गाय, बकरी और भेड़ जैसे चार पेट वाले जानवर दिन भर खाना चबाते यानी जुगाली करते रहते हैं और डकार मारते हैं.पहले पेट रूमेन में लाखों की संख्या में जीवाणु रहते हैं जो घास और पत्तियों जैसे फाइबर युक्त खाने को छोटे टुकड़ों में तोड़ कर उन्हें हज़म करना आसान बनाते हैं. इस प्रक्रिया में गाय के पेट से मीथेन गैस निकलती है.

नवंबर 2006 में आई संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के लिए ज़िम्मेदार कार्बन डाईऑक्साइड का जितना उत्सर्जन गाड़ियों या कारखाने के धुंए से होता है उससे कहीं अधिक गाय के पेट से होता है. इस रिपोर्ट के अनुसार वायुमंडल को सबसे अधिक ख़तरा गाय और भैसों से है.कारों से कार्बन डाईऑक्साईड का उत्सर्जन होता है जबकि गाय से मीथेन का. और कार्बन डाईऑक्साईड के मुक़ाबले मीथेन हमारे वायुमंडल के लिए कई गुना हानिकारक है. ये ग्रीनहाऊस गैसों को अधिक मात्रा में बांध कर रखती है और यह ग्लोबल वार्मिंग का बड़ा कारण है.

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